तुम्हें
भूलना चाहता हूँ, पर
भूलूं कैसे?
शून्य में भी
तुम्हारा चेहरा प्रकट होता है.
तुम्हें पास बुलाना चाहता हूँ, पर
बुलाऊं कैसे?
फ़ास्ला हमारे बीच
का मिटानेसे नहीं मिटता है.
तुमसे दूर जाना चाहता हूँ, पर
जाऊँ कैसे?
जहाँ भी जाऊँ तुम्हारा वजूद ही
नज़र आता है.
तुम्हारे नूर की
रोशनी ढूंढता हूँ,
पर पाऊँ कैसे?
चारों ओर जीवन में अंधेरा ही
अंधेरा दिख्ता है.
आब दुनिया छोड़ना चाहता हूँ, पर
छोड़ूं कैसे?
इधर देखूँ या
उधर, रस्ता नज़र
नहीं आता है.
न जी सकता हूँ न ही मर सकता, जियूँ तो जियूँ कैसे?
हर तिन्का लगता है एक पहाड़ और हर पल
एक युग लगता है.
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