Musings of a non-entity
Who am I?
Wednesday, 14 February 2018
कल, आज, और कल
कल
आज
हुआ
और
आज
कल
,
आज
कल
दिल
-
ओ
-
जिगर
हैं
बेकल
।
पल
पल
कण
कण
में
है
हलचल
,
महबूब
हो
गया
है
ओझल
।
अब
यहां
न
रुक
एक
पल
,
ए
रूह
-
ए
-
मजरूह
,
जहां
से
चलाचल
।
...श्याम सुन्दर बुलुसु
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