Musings of a non-entity
Who am I?
Thursday, 27 September 2018
बिखरी बज़्म
बिखरी
बज़्म
तेरी
फिर
सजने
को
है
रूप
तेरा
धरती
पर
फिर
आने
को
है
मुस्कराहट
होंठों
पर
फैलने
को
है
लम्हा
-
ए
-
इंतज़ार
ख़त्म
होने
को
है
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment