Saturday 3 September 2016

एक नाचीज़ का तारुफ़

मैं वह रंग हूँ जिसकी कोई कूंची नहीं
मैं वह कूंची हूँ जिसकी कोई तस्वीर नहीं
मैं वह तस्वीर हूँ जिसका कोई रूप नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह सुर हूँ जिसका कोई राग नहीं
मैं वह राग हूँ जिसकी कोई आवाज़ नहीं
मैं वह आवाज़ हूँ जिसकी कोई क़द्र नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह स्याही हूँ जिसकी कोई कलम नहीं
मैं वह कलम हूँ जिसका कोई अल्फ़ाज़ नहीं
मैं वह अल्फ़ाज़ हूँ जिसकी कोई कहानी नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह जज़्बा हूँ जिसका कोई नग़मा नहीं
मैं वह नग़मा हूँ जिसकी कोई गायकी नहीं
मैं वह गायकी हूँ जिसकी कोई रूह नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह कदम हूँ जिसका कोई सफ़र नहीं
मैं वह सफ़र हूँ जिसका कोई रास्ता नहीं
मैं वह रास्ता हूँ जिसकी कोई मंज़िल नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह आँख हूँ जिसकी कोई नींद नहीं
मैं वह नींद हूँ जिसका कोई ख़्वाब नहीं
मैं वह ख़्वाब हूँ जिसका कोई हक़दार नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

मैं वह अंग हूँ जिसका कोई जिस्म नहीं
मैं वह जिस्म हूँ जिसकी कोई शख़्सियत नहीं
मैं वह शख़्सियत हूँ जिसका कोई रूह नहीं
नाचीज़ हूँ, मेरा कोई तारुफ़ नहीं।

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