Thursday 19 April 2018

चलो थोड़ा और जूझते हैं


दिल में सपने धड़क रहे हैं
दूर क्षितिज पर वे गोचर हैं
रास्ते बहुत मुश्किल हैं 
पैर हमारे थके मांदे हैं

मंज़िल को पाना ज़रूरी है
पार करना हर मजबूरी है
जीवन विष का प्याला है
हर एक घूंठ हमें पीना है

नहीं कोई ध्येय आसान है
ही कोई लक्ष्य दुःसाध्य है
बाज़ुओं में अपनी ताक़त है
मन में पक्का इरादा है

तरक़्क़ी के मौके अनगिनत हैं
टांग अड़ारहे पुरुष अहंकारी हैं
क़दम क़दम पर अवरोध हैं
लांघने हमें अनेक टट्टर हैं

माँ की कोख में खतरा है
शिक्षा की कक्षा डरावनी है
क़दम क़दम पर आतंक है
नहीं सुरक्षा कहीं भी है

माँ बाप लाचार और बेबस हैं
सरकार और समाज उदासीन हैं
कानून और व्यवस्था असहाय हैं
महिलाओं के जीवन कँटीले हैं

हमले के बाद के विरोध बेकार हैं
लाख मोमबत्तियां मजबूर हैं
सुरक्षा कर्मी अपने खुद बनने हैं
नहीं और कोई रास्ते दूजे हैं

नारी की इज़्ज़त अपरक्राम्य है
बलात्कारी हैवान को मिटाना है
अपना ये जंग खुद लड़ना है
ये ज़िम्मेदारी भी खुद उठानी है

चलो थोड़ा और जूझते हैं

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