Sunday 29 April 2018

रिश्ता-ए-ख़ून


वो रिश्ता--ख़ून ही तो है
जो ख़ून--रिश्ता का शिकार बन तड़प रहा है
बहता है तो बहने दो लहू को, क्या फ़र्क़,
अब चश्म--खुश्क लिए कितना रोएं

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